Saturday, June 4, 2011

फेसबुक पर इवेंट जय हिंदुत्व - जय भारत


जय श्रीराधे ! 
मित्रो , इवेंट जय हिंदुत्व-जय भारत पर रेसपोंस देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
निश्चित ही इवेंट पेजेस पर हम सबकी सम्मिलित आवाज, सनातन धर्मं एवं संस्कृति का वरदायी सन्देश "सर्वे भवन्तु सुखिनः"  के द्वारा समस्त चराचर को सुख-शांति  प्रदत्त कर ,, परम मंगलकारी अभिलाषा "बसुधैव कुटुम्बम " के अंचल में ...विनाशकारी आतंकबाद,शत्रुता,राग-द्वेष,छल एवं दंभ को समूल नष्ट कर ..
जन-जन में भगवान श्रीकृष्ण कृपा स्वरुप -भारत सन्देश श्रीमद भगवदगीता को प्रचारित कर इस मातृस्वरुप 
परम कल्याणकारी वसुंधरा को सुशोभित करेगी  ! 
हमारी विश्वजई ध्वनि हुँकार  सत्य-सनातन  विरोधियों जिनकी मंशा-कुकृत्य भारत राष्ट्र-भारत धर्मं  को आघात देने की रहती है  ,के कलुषित हृदयों को विदीर्ण कर उन सबका मान-मर्दन कर इस धरा से वहिष्कृत करने में सक्षम  है ! अतः मित्रो , मुझे विश्वास है कि आप सब इवेंट पेजेस पर एक बार जयकारा घोष लगायेंगे-(कम से कम एक बार जय हिंदुत्व -जय भारत अवश्य लिख अपनी सम्मति प्रदान करेंगे )
मित्रो ,आप धर्म सेवा -राष्ट्र सेवा में प्रस्तुत सन्देश को कॉपी-पेष्ट कर अपने सभी मित्रों-परिचितों को पोस्ट करेंगे ...मैं "स्वीट राधिका राधे-राधे" आपको भरोसा देती हूँ कि यह कार्य-सेवा ( पोस्ट करना ) आपको  भगवान श्रीकृष्ण की अहैतुकी -अपरम्पार कृपा भक्ति प्रदान करेगा !! आप माँ भारती का वात्सल्य स्नेह प्राप्त कर सत्य की ओर आरुढ़ित होंगे !   
राधे-राधे श्याम 
जय सीताराम 
पार्वती पत्ये हर-हर महादेव !! 
जो बोले सो विजय-सनातन धर्मं की जय !! 
विश्व का कल्याण हो!! 
गौमाता की जय !!
अधर्म का नाश हो !!
पापियों का संहार हो !!  
मित्रो, आप भी निम्नांकित लिंक के द्वारा ..वरदाम-सुखदाम इवेंट जय हिंदुत्वा-जय भारत से जुड़कर अपने परिचित-मित्रों को इवेंट में भाग लेने को कह सकते हैं !
अंत में मेरी (स्वीट राधिका राधे-राधे  की )आप सबसे विनम्र निवेदन है कि  -परम कल्याण सोपान-भक्ति प्रदायी-मंगल मूर्ति-आनंद राशि -पाप नाशक -कलि ताप निवारक (इस इन्टरनेट रूपी घन -घोर कलियुग पर अनंत फलदायी ) आश्रित वांछा कल्पतरु श्रीहरि नाम सुधामृत का गान करते हुए न्यूनतम एक बार  हरिनाम महामंत्र अवश्य लिखें -सभी मित्रों को पोस्ट कर लिखने का आग्रह करें -

श्री प्रियालाल रस सेवी आदरणीय  भक्तजन -आइये 
श्री किशोरीजू-श्रीकृष्ण कांता -श्रीकृष्ण प्रिया- श्री ब्रषभानु दुलारी -श्री वृन्दावनेश्वरी -श्री राधिका जी के पावन-आह्लाद बर्षी-भक्त मन मधुकर मधुर पराग रस रूपी युगल चरणारविंदों  में प्राथना-चित्त समर्पित करते हुए -
गाते-गाते लिखें-
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!
जय-जय श्री राधे श्याम !! 

Saturday, May 28, 2011

धर्म न दूसर सत्य समाना




धर्म न दूसर सत्य समाना 
और परोपकार भक्तों की रीती है यथा श्री मद रामचरितमानस के आधार पर  "निज परिताप द्रवहि नवनीता ! पर दुःख द्रवहि संत सुपनीता !!
संत जन "जो सहि दुःख पर छिद्र दुरावा " अतः परहित भाव के आगे भगवद भजन गौण नहीं है अपितु सभी भक्ति मार्गियों में सहज ही परोपकार होता है ! केवल परोपकार भी झंझटकारी है क्योंकि श्री मद भगवद गीता के अनुसार सभी शुभ-अशुभ कर्मों अर्थार्त पुन्य-पाप सभी का फल भोगना पड़ता है ! फल प्राप्ति हेतु पुनरपि जन्म लेना ही पड़ता है ! जबकि भक्त अपने सभी पुण्यों को श्री कृष्णार्पण कर निष्काम भाव से भगवद प्रीति में रत रहता है  ! और मित्रो संसार में केवल एक मात्र सनातन धर्म ही धर्म है ! शेष सब मिथ्या आडम्बर है ,, अन्य सभी कथित धर्म व्यक्तिवादी हैं वहां स्वर्ग सुख ही सर्वोपरी है !जबकि सनातन धारा ब्रह्म-वादी, भगवद प्रेम प्रदायी है यहाँ "स्वर्गहु लाभ अ;प सुख दाई है" ईश्वर से मिलन ही जहाँ सर्वोपरि सिद्धांत है ! सनातन धर्म मुक्ति कांक्षी है जबकि अन्यान्य भ्रम प्रदायी -बंधन कारक है  ! सनातन धर्म सत्य है और सत्य का कभी अभाव नहीं होता " नासते विध्यते भावो-ना भावो विध्यते सतः "  सनातन धर्म सृष्टि के पूर्व भी था ..सृष्टि के समय भी है तथा आगे सृष्टि के उपरांत भी रहेगा ... और मित्रो सत्य के अलावा कुछ और का असतित्व ही नहीं तो कोई और कैसे धर्म हो सकता है ! भगवान कृष्ण के अनुसार श्री मद भगवद गीता में वर्णित अन्य धर्म केवल वर्णाश्रम-देश-काल आधारित कर्म हैं ! यदि कोई अन्य किसी धर्म में विश्वास रखता है तो वह भगवद गीता के विरुद्ध है ! अतः अन अनुकरणीय है ! मेरा सुझाव है कि सर्व धर्म सम्मलेन के बजाय सनातन धर्म सम्मलेन कहना अधिक उचित है ! अतः कृपया हिंदुत्व-सनातन धर्म के महत्वा को समझें ! और रही बात अन्य सभी धर्मों के मिथ्या सिद्ध करने की तो मित्रो हिंदुत्व  के अलावा अन्य सभी छद्म धर्म पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखते और पुनर्जन्म स्रष्टि का अकाट्य सत्य है जिसे विज्ञानं भी समझने की कोशिश में है ! अतः अन्य सभी धर्मों को हम केवल एक ही धारणा पुनर्जन्म धारणा से झूंठ सिद्ध कर देते हैं ! जय-जय श्री राधेश्याम - जय सियाराम -हर-हर महादेव     
जो बोले सो  विजय  -सत्य सनातन धर्म   की जय

Monday, April 11, 2011

श्री रामजन्म नवमी की सभी भक्त-मित्रों को वधाई

»♥« राधे-राधे.»♥«

राधे-राधे  हरेकृष्ण 
सभी मित्रों को नव संवत्सर २०६८ के लिए परम आध्य-शक्ति माता जगदम्बा के ममत्व रस सिंचित-वरद आशीष-कृपा छत्र-छाया में श्री रामकृपा रत्न भरी शुभकामनायें ...
जय जगधात्री माँ-जय भक्त-वत्सल माँ-जय सत्य स्वरूपा माँ-जय-जय जगदम्बे माँ !!
तेरे कृपा-सहारे मात शिवा-मेरे जीवन संवत सिद्ध हुए ! 
मिले राम रतन तेरी पूजा से -हम सब हर्षे कृत्य-कृत्य हुए !! 
हे गिरिजा माँ-हे कालिका माँ-हे कात्यायनी माता मेरी !
हे दुर्गा माँ दुर्गति नाशिनी मैं निश्चिन्त शरण तेरी !!
तेरे आसरे माता आश लगी श्री सीताराम चरित वरनों मैं सही !
मिलें कृष्ण कन्हैया श्रीजी संग सुनूँ मुरली मधुर ब्रजवास यही !!
जय-जय सीता राम --श्री राम जन्म नवमी की सभी भक्त-मित्रों को वधाई हो राधे-राधे  
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी !
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी !!
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी !
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी !!
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता !
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता !!
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता !
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता !!
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै !
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै !!
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै !
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै !!

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा !

कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा !!

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा !

यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा !!

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार !

निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार !!

जय-जय सीता राम --श्री राम जन्म नवमी की सभी भक्त-मित्रों को वधाई हो राधे-राधे हरेकृष्ण
जय-जय सीता राम --

Saturday, March 19, 2011

होली आई है कन्हाई आजा खेलें बजाएं ढप-बांसुरी


स्वीटी राधिका जी ,
वृन्दावनचन्द्र की केलि रहीं चित-चोर !!
आयो हुल्लड़ फाग को सखि खेलें नन्दकिशोर !
सब सखियन ने आज तो मिलि घेरे रससिरमोर ! 
छोडो नहिं यशुमतिलाल को याहे दीजो रंग में बोर !
श्री कीरतितनया श्री राधिका कीजै कृपा की कोर !
कबहु वीते नहिं यह भोर !!


स्वीट राधिका राधे-राधे अहम् त्वां चरणं प्रपन्ना 



Tuesday, March 1, 2011

महाशिव रात्रि - पार्थना



पार्वती पत्ये: हर-हर महादेव

साथियों, 
आइये हम सब मिलकर महाशिव रात्रि के पावन अवसर पर माता पार्वती एवं करुणावतार आशुतोष भगवान शंकर के चरण-कमलों में चित्त को समर्पित कर संकल्प लें-पार्थना करें -
हे विश्वनाथ ! हे जगत पितु-मातु ! हम मनसा-वाचा-कर्मणा अपनी मातृभूमि अपने सत्य-सनातन धर्मं की रक्षा-सेवा में तत्पर रहें एवं विधर्मियों-हत्यारे-अत्याचारियों का निर्भय हो दमन करें ! हमारा प्रत्येक पग इस महान सभ्यता-संस्कृति एवं विरासत के हित में हो ! हम पुनः अपना गौरवशाली अजिनाभ-खंड (भारत-बर्ष) प्राप्त कर राम-राज्य में रहें ! 
कायर एवं दुष्ट राजनेताओं को महान हिंदुत्व की महान राजनीति सिखा दें ,उनके द्वारा रचे चक्र-व्यूहों को नष्ट कर ,महान हिंदुत्व क्रांति का जग में सन्देश लिख दें ! 
एक और महाभारत के लिए पार्थसारथी , गीताशिक्षक भगवान श्रीकृष्ण के नेतृत्व में शंख-नाद कर 
रण-भेरि बजा ,महा संग्राम-बलिदान के लिए तत्पर रहें ! 
हे महादेव ! 
हमारी प्रत्येक श्वांस से हर-हर महादेव की विजय ध्वनि नभ में गूंजती चले ,हमारी नेत्र-दृष्टि जिधर-जिधर भी पड़े शत्रु समूह उधर-उधर भस्म होते चलें ! 
हे महाकाल ! 
हमारी कथनी-करनी शत्रुओं के लिए काल सदृश हो ! 
हे विश्वम्भर ! 
हम सदैव आपकी कृपा  से बाह्य एवं आतंरिक 
( राग-द्वेष-परपीडन-लोभ-तृष्णा-स्वार्थ-कायरता आदि) 
शत्रु-दोषों  से मुक्त रहें ! 
हे गोपेश्वर ! 
हमारे मन-तन-धन सर्वश्व श्रीश्यामा-श्याम के नाम हों !   
!राधे-राधे!!राधे-राधे!!राधे-राधे!!राधे-राधे!
!राधे-राधे!!राधे-राधे! 
!स्वीट राधिका राधे-राधे! 


कृपया अधिक जानकारी एवं श्री शंकर भगवान की कृपा प्राप्ति हेतु  के लिए निम्नांकित एड्रस लिंक पर क्लिक कर ब्लॉग "राधे-राधे"
को फोलो करें -

हे केदार-नाथ, हे शम्भू , हे शिव, हे जगदीश , हे औढर-दानी ,
हे त्रयम्वकेश्वर , हे पशु-पति नाथ , हे नागेश्वर, हे ममलेश्वर, 
हे घ्रिश्मेश्वर  , हे आशेश्वर, हे रामेश्वर, हे विश्वनाथ, हे महाकालेश्वर, 
हे विश्वेश्वर , हे ओंकारेश्वर, हे गोपेश्वर ,हे कामेश्वर, हे भूतेश्वर, 
हे अर्ध-नारीश्वर ,हे महादेव,हे गौरी-पति , हे पार्वती-पति, हे हर , 
हे वरेश्वर ,हे भूत-नाथ, हे रूद्र, हे भगवान शंकर करुणावतारम 
मैं रघुपति चरित गाथा निर्बाध रूप से लिखती रहूँ आपकी कृपा सहायता लाभ मुझे प्रति-पल मिलता रहे  !
कर्पूर गौरम करुणावतारं , संसार सारं भुजगेन्द्र हारं !  
सदा वसंतं हृदयार विन्दे , भवं भवानी सहितं नमामि !! 
भवानी शंकरौ वन्दे , श्रृद्धा विश्वास रुपिणौ !
याभ्यां विना न पश्च्यन्ति , सिद्धाः स्वान्तः स्थमीश्वरम !!  
गुरु पितु मातु महेश भवानी ! प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी !! 
सेवक स्वामी सखा सियपी के ! हित निरुपधि सब विधि तुलसी के !! 
वन्दौ बोध मयं नित्यं गुरुं शंकर रुपिणौ ! 
यमाश्रितो हि वक्रोपि चन्द्रः सर्वत्र वन्ध्यते !!  
कोऊ न संकर सम प्रिय मोरे !
शंकर सरिस न कोऊ प्रिय मोरें !
*** ॐ नम: शिवाय ***
नमामि शमीशान निर्वाण रूपं !
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं !!

Saturday, February 19, 2011

तीन लोक ते मथुरा न्यारी

आश्चर्य- मथुरा में एक mr. एवं miss . मथुरा  ,
के नाम से प्रतियोगिता आयोजन !
जिसके जजों द्वारा चयन करते समय बारम्बार खेद व्यक्त करना ,
कि प्रतियोगिता मथुरा में है ,
परन्तु , सब-अधिकांश प्रतिभागी वेस्टर्न प्रजेंटेसन दे रहे हैं !
उनको मथुरा शैली - मथुरा कल्चर का कोई भान नहीं !
मित्रो, यह बड़ा कडुवा सत्य है कि इस  -
"तीन लोक ते मथुरा न्यारी संस्कृति" में 
जोकि बड़े-बड़े आघातों-संकटों के उपरांत भी 
अपने स्वरुप से अविचिलित रही ,
पर आज पश्चिम की भोग प्रधान संस्कृति का आधिपत्य हो गया है !
जहाँ 'सरल-जीवन - उच्च-विचार' केन्द्रित थे 
वहां अधिकांश वर्ग में "दिखावटी-जीवन - ओछे-विचार" संकेंद्रित हैं ! जो संस्कृति दुष्ट तुर्क-मुग़ल आक्रान्ताओं के आक्रमण से नहीं डिगी, जिसको बिट्रिश परतंत्रता की जंजीरें नहीं बांधसकीं वो अपने ही जन-मानस के नैतिक-आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पतन से व्यग्र है !
सबसे पहले मेरा सभी माननीय प्रतियोगिता जजों-(चयन कर्ताओं जिन्हें हम टेलीविजन पर देख रहे हैं)  से अनुरोध है ( मेरा मानना है कि सभी जज-चयनकर्ता , ब्रज संस्कृति-धरोहर के संवाहक हैं, उनका ब्रज-वसुंधरा के प्रचार-प्रसार में अमूल्य योगदान रहा है एवं वर्त्तमान में भी वे इसी दिशा में संलग्न हैं और श्रीजी की कृपा से आगे भी ब्रजसेवा करेंगे  ) कि इस प्रतियोगिता का नाम mr. एवं miss. mathura  न रखकर , जोकि ब्रज-सांस्कृतिक रूप से अनुचित है , ब्रजधाम में सखी एवं ग्वाल-वाल होते हैं ! न कि पश्चिमी मि.,मिस. यदि प्रतियोगिता नाम ही अन्य संस्कृति का होगा तो कैसे प्रतिभागी अन्य संस्कृति को न दर्शायेंगे ! और भाइयो हमारे ब्रज में केवल नन्द-लाल लीलाधारी भगवान श्री कृष्ण ही पूर्ण पुरुष हैं (मि. हैं ) यहाँ किसी और को मि. कहना नितांत अनुचित है  !  कितना अच्छा हो यदि प्रतियोगिता नाम ग्वाल-वाल ब्रज मंडल एवं सखी-सहेली ब्रज मंडल हो जोकि सभी प्रकार से व्यापक द्रष्टिकोण लिए है ,एवं ब्रज-भूमि संस्कृति की संवाहक -पोषक है ! केवल मथुरा नाम रखना संकीर्ण है 

जोकि कंस के महोत्सव की ही याद दिलाता है !
राधे-राधे
जय श्री कृष्ण
जय ब्रज वसुंधरा

Thursday, December 16, 2010

महान हिंदुत्व एवं मानवता- अखिल विश्व

* * धर्म न दूसर सत्य समाना * *
जय श्री राम-सनातन धर्म "सत्य" है-सत्य गामी है-सत्य हमेशा है 
सत्य का कभी अभाव नहीं होता  -सत्य-सत्य है  

ॐ नमः शिवाय-"सत्य-सनातन"धर्म नित्य-स्थिर-अनिवार्य है 
सत्य-सनातन धर्म शिव एवं सुन्दर है  

जय सियाराम-राम राज्य सब सुखों की खान है -
यहाँ सत्य के आश्रय में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता 

जय वीणा-वादिनी -सत्य-सनातन धर्म नित्य- शाश्वत एवं शांत है 
-यश-विद्या प्रदायी है

वन्दौ लक्ष्मी-नारायनं-सत्य-समृद्धि-उन्नति प्रदायी एवं 
शान्ताकारम-कल्याण प्रद है 

सनातन संस्कृति भगवान श्री सीताराम कृपा प्रदायी है

सनातन धर्मं दान-दया-सेवा-वीरता-क्षमा-संकल्प पालन-परहित-
प्रेम एवं भक्ति का संगम है

सनातन दर्शन ईश्वर प्रेम के सापेक्ष है , नकि स्वर्गादि प्रलोभनों के 

सत्य-सनातन धर्मं प्रेम-संतुष्टि सिखाता है
न कि युद्ध,हिंसा,आतंकवाद,व्यभिचार,लूट,ठगी आदि

सनातन संस्कृति का नाम स्वान्तः सुखाय भी  है-
ये मधुर-सुरीली एवं रसमयी है
ये श्री राधिकाजी की प्रीति-रीती है-
श्री कृष्ण कन्हैया की मुरली धुन संगीत है  

सनातन-धर्मं  में ईश्वर घट-घट व्यापी के साथ, 
किसी भी सम्बन्ध से जुड़ अवतरित भी होता है 
यसुमति नंदन बनकर 
 छछिया भर छाछ पे नाचता भी है 

सनातन संस्कृति किसी भी बंधन से परे 
मन-मोहन माखन चाखनहार है


यहाँ ईश्वर हमारी आत्मा है-हमारा सखा है-
हमसे दूर न हो हमारे मध्य ही है

सनातन धर्म मर्यादा है-आचरण है-भक्त वत्सलता है 
एवं धर्म रक्षार्थ पुरुषार्थ है

सनातन संस्कृति में श्रेष्ठ राम कृपा-राम नाम आधार है

सनातन धर्मं-भगवद चरणारविन्द प्रीति एवं भगवंत कृपा दायी है

सत्य-सनातन वह तेज पुंज है जो जगत को बाहर-भीतर 
सब ओर से आलोकित करता है

सनातन धर्म जगत में वैभव-सम्पदा-आनंद है

सनातन संस्कृति साक्षात् जगदम्बा-माँ है 
जो सभी आश्रित जनों का दोष दर्शन किये बिना 
लालन-पालन करती है

सनातन संस्कृति दुष्ट जनों के लिए-आक्रान्ताओं के लिए 
साक्षात् महा-काली स्वरुप है

यहाँ नारी जाति भोग्या न होकर माँ स्वरूपा
साक्षात् नारायणी-शिवा है

सनातन धर्म शुभ-श्रेष्ठ-मंगलमूर्ति-गननायक 
एवं सिद्धि-निधि प्रदायक है

सनातन धर्मं शिव स्वरुप है

सनातन धर्म 
भक्त वांछा कल्प तरु श्री मन नृसिंह नारायण है

सनातन धर्मं श्रेष्ठ सत्य नारायण है

सनातन धर्म एश्वर्य-माधुर्य-सत्य एवं कृपा का संगम है
श्रीमन लक्ष्मी-नारायण स्वरुप है 

सनातन का अर्थ है - सदैव था (किसी ने बनाया नहीं) सदैव है
एवं सदैव रहेगा(कोई नष्ट नहीं कर सकता ) 

सनातन का अर्थ है शिव अर्थार्त प्रत्येक काल में कल्याणकारी 

सनातन का अर्थ है-सुन्दरम अर्थात प्रत्येक युग में 
एक मात्र श्रेष्ठ-उत्तम-अविनाशी एवं कृपालु

सनातन धर्म जगत-सृष्टि का कर्ता-भर्ता एवं नियंत्रक है

या देवि सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमो नमः 
जो बोले सो अभय-सत्य सनातन धर्म की जय-हर-हर महादेव
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे ! हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे  !!
-सनातन सन्देश-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ! 
सर्वे भद्राणि पश्च्यन्तु मां कश्चिद् दुःख भाग भवेत् !! 
अर्थात- सब सुखी हों-सभी निरोगी हों सभी दीर्घजीवी हों सभी की उन्नति हो हे भगवान किसी को रंच-मात्र भी दुःख न हो 
मित्रो प्रस्तुत ब्लॉग  के अंतर्गत हम हिन्दुत्व अर्थात महान हिन्दू धर्म के सन्दर्भ में चर्चा-परिचर्चा करेंगे -
हमारा ध्येय महान धर्म के महान इतिहास -गौरव एवं धर्मं-ध्वजी वीर-बलिदानी भक्त-संत-महात्माओं के जीवन अवलोकन कर प्रेरणा लेना है जिससे हम भी इस भगवान की कृपा स्वरुप सनातन धर्मं को समझें व पालन कर विधर्मियों की कुत्सित मंशा पर प्रहार कर उन्हें समूल नष्ट करदें ...
आज दुर्भाग्य से चहुँ ओर धर्मं के विपरीत आचरण हो रहा है लोग सभ्यता और संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं ..साथ ही साथ विधर्मी आक्रान्ता जो भारत का खाकर के भारत एवं भारत की संतानों -संस्कृति पर कुठाराघात कर रहे हैं ...कहीं बम-ब्लास्ट करके कहीं प्यार के नाम पर नव -युवतियों को छल के जेहाद नामक कुत्सित -लक्ष साधे जा रहे हैं..
भारतीय राजनीति ध्रित्रराष्ट्र की तरह अंधी होकर तुष्टि करण की राह पर इन धर्मं विरोधी हत्यारे-पापियों का पोषण कर रही है...

साथियों यदि हिन्दू है तो भारत राष्ट्र भी है क्योंकि हिंदुत्व इस राष्ट्र की आत्मा है बिना आत्मा के जिस प्रकार शरीर शव हो  जाता है-उसी प्रकार बिना  हिंदुत्व के बिना सनातन संस्कृति के यह राष्ट्र मृत प्राय है
मित्रो,हिंदुत्व किसी धार्मिक कट्टर बाद या हिंसा-उत्प्रीडन या व्यक्ति विरोधी या स्वतंत्र चिंतन विरोध का नाम नहीं है ! हिंदुत्व तो विश्व बंधुत्व की प्रार्थना युक्त सर्व के सुख हेतु मनीषियों द्वारा खोजा एवं जीवन में अपनाया वैज्ञानिक आधार बाला स्वस्थ दर्शन है जिसमें स्वतंत्र मानवीय अभिलाषाएं जो सबके लिए उन्नति एवं प्रसन्नता के वरदान हैं यहाँ" ईश्वरः सर्व भूतानाम " "बसुधैव कुटुम्बम " "सर्वे भवन्तु सुखिनः " जैसी अभिलाषाएं-मंत्र हैं साथ ही साथ भगवान राम एवं कृष्ण जैसे लीलावतार भगवान शंकर जैसे करुनावतार एवं माता जगदम्बा जैसे कृपावतारों द्वारा भगवान से सरल एवं प्रेम भरी-सम्बन्धात्मक निकटता है  
मित्रो केवल यही एक मात्र धर्म-दर्शन है जहाँ ईश्वर को आप माता-पिता-भाई-बहन-गुरु-प्रेमी किसी भी रूप में भज कर प्राप्त कर सकते हो ..हिन्दू धर्म-दर्शन में स्वर्ग ही अंतिम नहीं है यहाँ "स्वर्गहु लाभ अल्प सुख दाई " कह कर स्वर्ग सुख को भी तुच्छ सुझाया है यहाँ भगवान से प्रीती ही सर्वोपरि है तथा मृत्यु के बाद ही नहीं मृत्यु से पहले इस जीवन में ही  ईश्वर तक पहुँच बताई है (अन्यान्य कथित धर्म मृत्यु के बाद ही ईश्वर मिलन को दर्शाते हैं -उनके यहाँ स्वर्ग ही सर्वोपरि है-पुनर्जन्म संभव नहीं है जबकि अनेकों घटनाओं से सिद्धहै कि पुनर्जन्म होता है-अतःवाकी सब पुनर्जन्म न मानने वाले धर्म मिथ्या सिद्ध होते हैं          
दुर्भाग्य से अपने संकीर्ण स्वार्थों के कारण मानव एवं विश्व  इस महान धर्मं-संस्कृति से विमुख हो (सबसे पहले एकमात्र धर्मं-सनातन धर्म था ) नाना प्रकार के मतों-धर्मों में पड शांति-आनंद एवं सत्य-अहिंसा से दूर हो विनाश के चक्रव्यूह में जेहाद-क्रुसेड-इत्यादि कुत्सित मार्गों को अपना मानवता के लिए शत्रु सिद्ध हो रहा है मेरी अपील है कि हम सबको अपनी महान एवं कल्याणकारी सनातन संस्कृति-धर्म की रक्षा-प्रचार में सहयोग कर मानवता एवं एक राष्ट्र (मेरा मानना है की संपूर्ण धरा एक राष्ट्र है यहाँ कोई दूसराराष्ट्र हो ही नहीं सकता एवं यही उचित-न्यायोचित धर्म है ) के लिए संकल्प बद्ध होना चाहिए !
-मित्रो  विश्वास रखें आप यदि इस ब्लॉग में पोस्ट करते हैं तो ये आपकी ओर से सच्ची-राष्ट्र सेवा-धर्म सेवा एवं मानवता सेवा होगी-
   प्रेम से वोलें-" जो वोले सो अभय-सत्य सनातन धर्म की जय"
हर-हर महादेव
जय-जय सिया राम
राधे-राधे-हरेकृष्ण
-सत्य-सनातन धर्म की कुछ झलकियाँ-
*सनातन धर्मं दान-दया-सेवा-क्षमा-त्याग-वीरता-अहिंसा-करुणा-शरणागत रक्षा-संकल्प पालन-परहित- प्रेम एवं भक्ति का संगम है
*सत्य-सनातन धर्मं प्रेम-संतुष्टि-दान-त्याग-दया-वीरता-क्षमा एवं श्री रामभक्ति सिखा महावीरबजरंगबली -राम काज करिबे को रसिया बनाता है न कि आतंकबाद-हिंसा-वैमनस्यता-धोखा-धडी  
*सनातन-धर्मं में ईश्वर घट-घट व्यापी के साथ, किसी भी सम्बन्ध से जुड़ अवतरित भी होता है 
यहाँ परब्रह्म यसुमति नंदन बन छछिया भर छाछ पे नाचता भी है
*सनातन दर्शन ईश्वर प्रेम के सापेक्ष है , नकि स्वर्गादि प्रलोभनों के.. 
*सनातन संस्कृति का नाम स्वान्तः सुखाय भी है ये मधुर-सुरीली एवं रसमयी है यह प्रीति की रीत-
प्रीति के गीत श्री राधिका वल्लभ रस सुधा है
*सनातन संस्कृति किसी भी बंधन से परे मन-मोहन  माखन चाखनहार है
*सनातन संस्कृति में श्रेष्ठ राम कृपा-राम नाम आधार है
*सनातन धर्म-मर्यादा है-आचरण है-भक्त वत्सलता है एवं धर्म रक्षार्थ पुरुषार्थ है
*सनातन धर्मं-भगवद चरणारविन्द प्रीति एवं भगवंत कृपा दायी है 
*सनातन धर्म जगत में वैभव-सम्पदा-आनंद है
*सनातन धर्म भक्त वांछा कल्प तरु श्री मन नृसिंह नारायण है
*सनातन धर्मं श्रेष्ठ सत्य नारायण है
*सनातन धर्म एश्वर्य-माधुर्य-सत्य एवं कृपा का संगम है 
*सनातन का अर्थ है-सदैव था(किसी ने बनाया नहीं)सदैव है एवं सदैव रहेगा(कोई नष्ट नहीं कर सकता)
*सनातन धर्म-संस्कृति जगत के-सृष्टि के कर्ता-भर्ता एवं नियंत्रक है
*सनातन का अर्थ है-सुन्दरम अर्थात प्रत्येक युग में एक मात्र श्रेष्ठ-उत्तम-अविनाशी एवं कृपालु
*सनातन का अर्थ है शिव अर्थार्त प्रत्येक काल में कल्याणकारी
*सनातन धर्म शुभ-श्रेष्ठ-मंगलमूर्ति-गननायक एवं सिद्धि-निधि प्रदायक है
*यहाँ नारी जाति भोग्या न होकर माँ स्वरुप है-वन्दनीय है-साक्षात् नारायणी-शिवा है
*सनातन संस्कृति दुष्ट जनों के लिए-आक्रान्ताओं के लिए साक्षात् महा-काली स्वरुप है 
*सनातन संस्कृति साक्षात् जगदम्बा-माँ है जो सभी आश्रित जनों का दोष दर्शन किये बिना लालन-पालन-कृपा करती है
*सत्य-सनातन धर्म वह तेज पुंज है जो सृष्टि-जगत को बाहर-भीतर सब प्रकार से आलोकित करता है
*यहाँ ईश्वर हमारी आत्मा है-हमारा सखा है-हमसे दूर न हो कर हमारे मध्य ही है
*जय वीणावादिनी--"सत्य-सनातन" धर्म नित्य-शाश्वत एवं शांत है--"यश-विद्या" प्रदायी है
*जय सियाराम--राम राज्य सब सुखों की खान है -यहाँ सत्य के आश्रय में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता श्री राम कृपा के आश्रय में सब मंगल-सुख-आनंद प्राप्त होते हैं 
*जय श्री राम-सनातन धर्म "सत्य" है-सत्य गामी है-सत्य हमेशा है,था और रहेगा सत्य का कभी अभाव नहिं होता- सत्य ही एक मात्र  सत्य है !
*ॐ नमः शिवाय--"सत्य-सनातन"  नित्य-स्थिर-अनिवार्य है ! "सत्य-सनातन"  शिव एवं सुन्दर है !
पारवती पत्ये-हर-हर महादेव
ॐ अम्बिकायै नमः
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे ! 
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे  !!
राधे-राधे 
धर्म न दूसर सत्य समाना
हरेकृष्ण !
मित्रो , संसार में केवल एक मात्र सत्य धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !
सत्य -सनातन है , सनातन का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा निर्मित नहीं ,सनातन का विस्तृत अर्थ है -जो पहले अर्थात स्रष्टि से पूर्व था ,स्रष्टि के समय अर्थात आज भी है ,एवं स्रष्टि के बाद यानि हमेशा रहेगा !
हो सकता है कुछ समय मानव निर्मित छद्म धर्म संसार में कुछ समय के लिए व्याप्त दिखें ,परन्तु जिस प्रकार वादल सूर्य को कुछ समय ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य पुनः इन वादलों को फाड़ कर प्रकट हो जाता है ! इसी प्रकार सत्य-सनातन धर्म अन्य सभी मायावी -झुंठे -कल्पित  धर्म के नाम पर अधर्मों को अपने तेज से पुनः नष्ट कर समस्त चरा-चर की रक्षा हेतु संसार में व्याप्त हो जाता है !
मित्रो सौभाग्य से हमारा जन्म इस सत्य-सनातन धारा में हुआ है ! 
अथवा भगवान के-श्री गुरु के आशीर्वाद से हम सनातन धर्म धारा से जुड़े हैं ! 
तो हमारा नैष्ठिक कर्तव्य है कि हम अखिल जगत में सनातन धर्म -धारा के अविरल प्रवाह के लिए संकल्प बद्ध हों !
इसी सत्य-सनातन प्रवाह में अद्वैत,द्वैत,शुद्धा-द्वैत ,द्वैता-द्वैत, अचिन्त्य भेदा-भेद ,विशुद्धा-द्वैत  नामक अनेकों सत्य-संकल्पित धाराएँ वहीं ! जिनका एकमात्र प्रयोजन सत्य से साकार होना है !
उपरोक्त धाराओं में अंतिम चार धारा वैष्णव रीती कहलातीं हैं  !
जिनमें भगवद रूपी सत्य प्राप्ति  के लिए उपासना रीती भगवद कृपा-प्रेम भरा पड़ा है !
यहाँ साधक का संपूर्ण योग-क्षेम भगवद शरणागति के द्वारा  , श्री भगवान के कर-कमलों में होता है ! यहाँ श्रीभगवान अपनी कृपा महिमा के द्वारा शरणागत-भक्त को परम दुर्लभ 'अभय' पद प्रदान करते हैं !
अर्थात भक्त को किसी भी प्रकार कि चिंता-क्लेश-दुःख-पीड़ा-ताप-अवसाद-भ्रम नहीं रहता एवं इसी जीवन में भगवद प्राप्ति हो जाती है !
मित्रो,
यह सर्व-श्रेष्ठ साधन भगवद कृपा-शरणागति पूर्णरूप से निर्मल-चित्त होने पर प्राप्त होती है ! 
यथा "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!"
और यह निर्मल चित्त-ह्रदय भगवान के श्री नामों के जप-संकीर्तन 
से प्राप्त होता है !
तो आइये अभी से इस परम मनोहर भगवद नाम जप-संकीर्तन 
को अपना आधार वना-
प्रेम से गायें-
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!
जय-जय श्री राधे !!