Thursday, December 16, 2010

महान हिंदुत्व एवं मानवता- अखिल विश्व

* * धर्म न दूसर सत्य समाना * *
जय श्री राम-सनातन धर्म "सत्य" है-सत्य गामी है-सत्य हमेशा है 
सत्य का कभी अभाव नहीं होता  -सत्य-सत्य है  

ॐ नमः शिवाय-"सत्य-सनातन"धर्म नित्य-स्थिर-अनिवार्य है 
सत्य-सनातन धर्म शिव एवं सुन्दर है  

जय सियाराम-राम राज्य सब सुखों की खान है -
यहाँ सत्य के आश्रय में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता 

जय वीणा-वादिनी -सत्य-सनातन धर्म नित्य- शाश्वत एवं शांत है 
-यश-विद्या प्रदायी है

वन्दौ लक्ष्मी-नारायनं-सत्य-समृद्धि-उन्नति प्रदायी एवं 
शान्ताकारम-कल्याण प्रद है 

सनातन संस्कृति भगवान श्री सीताराम कृपा प्रदायी है

सनातन धर्मं दान-दया-सेवा-वीरता-क्षमा-संकल्प पालन-परहित-
प्रेम एवं भक्ति का संगम है

सनातन दर्शन ईश्वर प्रेम के सापेक्ष है , नकि स्वर्गादि प्रलोभनों के 

सत्य-सनातन धर्मं प्रेम-संतुष्टि सिखाता है
न कि युद्ध,हिंसा,आतंकवाद,व्यभिचार,लूट,ठगी आदि

सनातन संस्कृति का नाम स्वान्तः सुखाय भी  है-
ये मधुर-सुरीली एवं रसमयी है
ये श्री राधिकाजी की प्रीति-रीती है-
श्री कृष्ण कन्हैया की मुरली धुन संगीत है  

सनातन-धर्मं  में ईश्वर घट-घट व्यापी के साथ, 
किसी भी सम्बन्ध से जुड़ अवतरित भी होता है 
यसुमति नंदन बनकर 
 छछिया भर छाछ पे नाचता भी है 

सनातन संस्कृति किसी भी बंधन से परे 
मन-मोहन माखन चाखनहार है


यहाँ ईश्वर हमारी आत्मा है-हमारा सखा है-
हमसे दूर न हो हमारे मध्य ही है

सनातन धर्म मर्यादा है-आचरण है-भक्त वत्सलता है 
एवं धर्म रक्षार्थ पुरुषार्थ है

सनातन संस्कृति में श्रेष्ठ राम कृपा-राम नाम आधार है

सनातन धर्मं-भगवद चरणारविन्द प्रीति एवं भगवंत कृपा दायी है

सत्य-सनातन वह तेज पुंज है जो जगत को बाहर-भीतर 
सब ओर से आलोकित करता है

सनातन धर्म जगत में वैभव-सम्पदा-आनंद है

सनातन संस्कृति साक्षात् जगदम्बा-माँ है 
जो सभी आश्रित जनों का दोष दर्शन किये बिना 
लालन-पालन करती है

सनातन संस्कृति दुष्ट जनों के लिए-आक्रान्ताओं के लिए 
साक्षात् महा-काली स्वरुप है

यहाँ नारी जाति भोग्या न होकर माँ स्वरूपा
साक्षात् नारायणी-शिवा है

सनातन धर्म शुभ-श्रेष्ठ-मंगलमूर्ति-गननायक 
एवं सिद्धि-निधि प्रदायक है

सनातन धर्मं शिव स्वरुप है

सनातन धर्म 
भक्त वांछा कल्प तरु श्री मन नृसिंह नारायण है

सनातन धर्मं श्रेष्ठ सत्य नारायण है

सनातन धर्म एश्वर्य-माधुर्य-सत्य एवं कृपा का संगम है
श्रीमन लक्ष्मी-नारायण स्वरुप है 

सनातन का अर्थ है - सदैव था (किसी ने बनाया नहीं) सदैव है
एवं सदैव रहेगा(कोई नष्ट नहीं कर सकता ) 

सनातन का अर्थ है शिव अर्थार्त प्रत्येक काल में कल्याणकारी 

सनातन का अर्थ है-सुन्दरम अर्थात प्रत्येक युग में 
एक मात्र श्रेष्ठ-उत्तम-अविनाशी एवं कृपालु

सनातन धर्म जगत-सृष्टि का कर्ता-भर्ता एवं नियंत्रक है

या देवि सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमो नमः 
जो बोले सो अभय-सत्य सनातन धर्म की जय-हर-हर महादेव
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे ! हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे  !!
-सनातन सन्देश-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ! 
सर्वे भद्राणि पश्च्यन्तु मां कश्चिद् दुःख भाग भवेत् !! 
अर्थात- सब सुखी हों-सभी निरोगी हों सभी दीर्घजीवी हों सभी की उन्नति हो हे भगवान किसी को रंच-मात्र भी दुःख न हो 
मित्रो प्रस्तुत ब्लॉग  के अंतर्गत हम हिन्दुत्व अर्थात महान हिन्दू धर्म के सन्दर्भ में चर्चा-परिचर्चा करेंगे -
हमारा ध्येय महान धर्म के महान इतिहास -गौरव एवं धर्मं-ध्वजी वीर-बलिदानी भक्त-संत-महात्माओं के जीवन अवलोकन कर प्रेरणा लेना है जिससे हम भी इस भगवान की कृपा स्वरुप सनातन धर्मं को समझें व पालन कर विधर्मियों की कुत्सित मंशा पर प्रहार कर उन्हें समूल नष्ट करदें ...
आज दुर्भाग्य से चहुँ ओर धर्मं के विपरीत आचरण हो रहा है लोग सभ्यता और संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं ..साथ ही साथ विधर्मी आक्रान्ता जो भारत का खाकर के भारत एवं भारत की संतानों -संस्कृति पर कुठाराघात कर रहे हैं ...कहीं बम-ब्लास्ट करके कहीं प्यार के नाम पर नव -युवतियों को छल के जेहाद नामक कुत्सित -लक्ष साधे जा रहे हैं..
भारतीय राजनीति ध्रित्रराष्ट्र की तरह अंधी होकर तुष्टि करण की राह पर इन धर्मं विरोधी हत्यारे-पापियों का पोषण कर रही है...

साथियों यदि हिन्दू है तो भारत राष्ट्र भी है क्योंकि हिंदुत्व इस राष्ट्र की आत्मा है बिना आत्मा के जिस प्रकार शरीर शव हो  जाता है-उसी प्रकार बिना  हिंदुत्व के बिना सनातन संस्कृति के यह राष्ट्र मृत प्राय है
मित्रो,हिंदुत्व किसी धार्मिक कट्टर बाद या हिंसा-उत्प्रीडन या व्यक्ति विरोधी या स्वतंत्र चिंतन विरोध का नाम नहीं है ! हिंदुत्व तो विश्व बंधुत्व की प्रार्थना युक्त सर्व के सुख हेतु मनीषियों द्वारा खोजा एवं जीवन में अपनाया वैज्ञानिक आधार बाला स्वस्थ दर्शन है जिसमें स्वतंत्र मानवीय अभिलाषाएं जो सबके लिए उन्नति एवं प्रसन्नता के वरदान हैं यहाँ" ईश्वरः सर्व भूतानाम " "बसुधैव कुटुम्बम " "सर्वे भवन्तु सुखिनः " जैसी अभिलाषाएं-मंत्र हैं साथ ही साथ भगवान राम एवं कृष्ण जैसे लीलावतार भगवान शंकर जैसे करुनावतार एवं माता जगदम्बा जैसे कृपावतारों द्वारा भगवान से सरल एवं प्रेम भरी-सम्बन्धात्मक निकटता है  
मित्रो केवल यही एक मात्र धर्म-दर्शन है जहाँ ईश्वर को आप माता-पिता-भाई-बहन-गुरु-प्रेमी किसी भी रूप में भज कर प्राप्त कर सकते हो ..हिन्दू धर्म-दर्शन में स्वर्ग ही अंतिम नहीं है यहाँ "स्वर्गहु लाभ अल्प सुख दाई " कह कर स्वर्ग सुख को भी तुच्छ सुझाया है यहाँ भगवान से प्रीती ही सर्वोपरि है तथा मृत्यु के बाद ही नहीं मृत्यु से पहले इस जीवन में ही  ईश्वर तक पहुँच बताई है (अन्यान्य कथित धर्म मृत्यु के बाद ही ईश्वर मिलन को दर्शाते हैं -उनके यहाँ स्वर्ग ही सर्वोपरि है-पुनर्जन्म संभव नहीं है जबकि अनेकों घटनाओं से सिद्धहै कि पुनर्जन्म होता है-अतःवाकी सब पुनर्जन्म न मानने वाले धर्म मिथ्या सिद्ध होते हैं          
दुर्भाग्य से अपने संकीर्ण स्वार्थों के कारण मानव एवं विश्व  इस महान धर्मं-संस्कृति से विमुख हो (सबसे पहले एकमात्र धर्मं-सनातन धर्म था ) नाना प्रकार के मतों-धर्मों में पड शांति-आनंद एवं सत्य-अहिंसा से दूर हो विनाश के चक्रव्यूह में जेहाद-क्रुसेड-इत्यादि कुत्सित मार्गों को अपना मानवता के लिए शत्रु सिद्ध हो रहा है मेरी अपील है कि हम सबको अपनी महान एवं कल्याणकारी सनातन संस्कृति-धर्म की रक्षा-प्रचार में सहयोग कर मानवता एवं एक राष्ट्र (मेरा मानना है की संपूर्ण धरा एक राष्ट्र है यहाँ कोई दूसराराष्ट्र हो ही नहीं सकता एवं यही उचित-न्यायोचित धर्म है ) के लिए संकल्प बद्ध होना चाहिए !
-मित्रो  विश्वास रखें आप यदि इस ब्लॉग में पोस्ट करते हैं तो ये आपकी ओर से सच्ची-राष्ट्र सेवा-धर्म सेवा एवं मानवता सेवा होगी-
   प्रेम से वोलें-" जो वोले सो अभय-सत्य सनातन धर्म की जय"
हर-हर महादेव
जय-जय सिया राम
राधे-राधे-हरेकृष्ण
-सत्य-सनातन धर्म की कुछ झलकियाँ-
*सनातन धर्मं दान-दया-सेवा-क्षमा-त्याग-वीरता-अहिंसा-करुणा-शरणागत रक्षा-संकल्प पालन-परहित- प्रेम एवं भक्ति का संगम है
*सत्य-सनातन धर्मं प्रेम-संतुष्टि-दान-त्याग-दया-वीरता-क्षमा एवं श्री रामभक्ति सिखा महावीरबजरंगबली -राम काज करिबे को रसिया बनाता है न कि आतंकबाद-हिंसा-वैमनस्यता-धोखा-धडी  
*सनातन-धर्मं में ईश्वर घट-घट व्यापी के साथ, किसी भी सम्बन्ध से जुड़ अवतरित भी होता है 
यहाँ परब्रह्म यसुमति नंदन बन छछिया भर छाछ पे नाचता भी है
*सनातन दर्शन ईश्वर प्रेम के सापेक्ष है , नकि स्वर्गादि प्रलोभनों के.. 
*सनातन संस्कृति का नाम स्वान्तः सुखाय भी है ये मधुर-सुरीली एवं रसमयी है यह प्रीति की रीत-
प्रीति के गीत श्री राधिका वल्लभ रस सुधा है
*सनातन संस्कृति किसी भी बंधन से परे मन-मोहन  माखन चाखनहार है
*सनातन संस्कृति में श्रेष्ठ राम कृपा-राम नाम आधार है
*सनातन धर्म-मर्यादा है-आचरण है-भक्त वत्सलता है एवं धर्म रक्षार्थ पुरुषार्थ है
*सनातन धर्मं-भगवद चरणारविन्द प्रीति एवं भगवंत कृपा दायी है 
*सनातन धर्म जगत में वैभव-सम्पदा-आनंद है
*सनातन धर्म भक्त वांछा कल्प तरु श्री मन नृसिंह नारायण है
*सनातन धर्मं श्रेष्ठ सत्य नारायण है
*सनातन धर्म एश्वर्य-माधुर्य-सत्य एवं कृपा का संगम है 
*सनातन का अर्थ है-सदैव था(किसी ने बनाया नहीं)सदैव है एवं सदैव रहेगा(कोई नष्ट नहीं कर सकता)
*सनातन धर्म-संस्कृति जगत के-सृष्टि के कर्ता-भर्ता एवं नियंत्रक है
*सनातन का अर्थ है-सुन्दरम अर्थात प्रत्येक युग में एक मात्र श्रेष्ठ-उत्तम-अविनाशी एवं कृपालु
*सनातन का अर्थ है शिव अर्थार्त प्रत्येक काल में कल्याणकारी
*सनातन धर्म शुभ-श्रेष्ठ-मंगलमूर्ति-गननायक एवं सिद्धि-निधि प्रदायक है
*यहाँ नारी जाति भोग्या न होकर माँ स्वरुप है-वन्दनीय है-साक्षात् नारायणी-शिवा है
*सनातन संस्कृति दुष्ट जनों के लिए-आक्रान्ताओं के लिए साक्षात् महा-काली स्वरुप है 
*सनातन संस्कृति साक्षात् जगदम्बा-माँ है जो सभी आश्रित जनों का दोष दर्शन किये बिना लालन-पालन-कृपा करती है
*सत्य-सनातन धर्म वह तेज पुंज है जो सृष्टि-जगत को बाहर-भीतर सब प्रकार से आलोकित करता है
*यहाँ ईश्वर हमारी आत्मा है-हमारा सखा है-हमसे दूर न हो कर हमारे मध्य ही है
*जय वीणावादिनी--"सत्य-सनातन" धर्म नित्य-शाश्वत एवं शांत है--"यश-विद्या" प्रदायी है
*जय सियाराम--राम राज्य सब सुखों की खान है -यहाँ सत्य के आश्रय में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता श्री राम कृपा के आश्रय में सब मंगल-सुख-आनंद प्राप्त होते हैं 
*जय श्री राम-सनातन धर्म "सत्य" है-सत्य गामी है-सत्य हमेशा है,था और रहेगा सत्य का कभी अभाव नहिं होता- सत्य ही एक मात्र  सत्य है !
*ॐ नमः शिवाय--"सत्य-सनातन"  नित्य-स्थिर-अनिवार्य है ! "सत्य-सनातन"  शिव एवं सुन्दर है !
पारवती पत्ये-हर-हर महादेव
ॐ अम्बिकायै नमः
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे ! 
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे  !!
राधे-राधे 
धर्म न दूसर सत्य समाना
हरेकृष्ण !
मित्रो , संसार में केवल एक मात्र सत्य धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !
सत्य -सनातन है , सनातन का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा निर्मित नहीं ,सनातन का विस्तृत अर्थ है -जो पहले अर्थात स्रष्टि से पूर्व था ,स्रष्टि के समय अर्थात आज भी है ,एवं स्रष्टि के बाद यानि हमेशा रहेगा !
हो सकता है कुछ समय मानव निर्मित छद्म धर्म संसार में कुछ समय के लिए व्याप्त दिखें ,परन्तु जिस प्रकार वादल सूर्य को कुछ समय ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य पुनः इन वादलों को फाड़ कर प्रकट हो जाता है ! इसी प्रकार सत्य-सनातन धर्म अन्य सभी मायावी -झुंठे -कल्पित  धर्म के नाम पर अधर्मों को अपने तेज से पुनः नष्ट कर समस्त चरा-चर की रक्षा हेतु संसार में व्याप्त हो जाता है !
मित्रो सौभाग्य से हमारा जन्म इस सत्य-सनातन धारा में हुआ है ! 
अथवा भगवान के-श्री गुरु के आशीर्वाद से हम सनातन धर्म धारा से जुड़े हैं ! 
तो हमारा नैष्ठिक कर्तव्य है कि हम अखिल जगत में सनातन धर्म -धारा के अविरल प्रवाह के लिए संकल्प बद्ध हों !
इसी सत्य-सनातन प्रवाह में अद्वैत,द्वैत,शुद्धा-द्वैत ,द्वैता-द्वैत, अचिन्त्य भेदा-भेद ,विशुद्धा-द्वैत  नामक अनेकों सत्य-संकल्पित धाराएँ वहीं ! जिनका एकमात्र प्रयोजन सत्य से साकार होना है !
उपरोक्त धाराओं में अंतिम चार धारा वैष्णव रीती कहलातीं हैं  !
जिनमें भगवद रूपी सत्य प्राप्ति  के लिए उपासना रीती भगवद कृपा-प्रेम भरा पड़ा है !
यहाँ साधक का संपूर्ण योग-क्षेम भगवद शरणागति के द्वारा  , श्री भगवान के कर-कमलों में होता है ! यहाँ श्रीभगवान अपनी कृपा महिमा के द्वारा शरणागत-भक्त को परम दुर्लभ 'अभय' पद प्रदान करते हैं !
अर्थात भक्त को किसी भी प्रकार कि चिंता-क्लेश-दुःख-पीड़ा-ताप-अवसाद-भ्रम नहीं रहता एवं इसी जीवन में भगवद प्राप्ति हो जाती है !
मित्रो,
यह सर्व-श्रेष्ठ साधन भगवद कृपा-शरणागति पूर्णरूप से निर्मल-चित्त होने पर प्राप्त होती है ! 
यथा "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!"
और यह निर्मल चित्त-ह्रदय भगवान के श्री नामों के जप-संकीर्तन 
से प्राप्त होता है !
तो आइये अभी से इस परम मनोहर भगवद नाम जप-संकीर्तन 
को अपना आधार वना-
प्रेम से गायें-
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!
जय-जय श्री राधे !!


16 comments:

  1. सत्य-सनातन धर्मं की जय
    सत्य-सनातन धर्मं की जय मित्रो सभी धर्मों का मूल एकमात्र सत्य है और यह सत्य भगवद गीता के अनुसार "नासते विद्यते भावो ना भावो विद्यते सतः" सदैव सनातन है ...सौभाग्य से हम भारतवासियों का सत्य प्रधान धर्मं-संस्कृति है ....हमारा लक्ष्य मिथ्या-माया-भ्रम से निकल सत्यरूपी प्रकाश की ओर गतिशील होना है ...अन्धकार से उजाले की ओर...असत्य से सत्य की ओर ...मृत्यु से जीवन की ओर अग्रसर होना हमारा ध्येय-प्रार्थना है.."तमसो माँ ज्योतिर गमय -असतो माँ सद गमय-मृत्योर माँ अमृतो गमय "सत्य के आँचल-आश्रय में हमारी सबके मंगल की कामना है "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः -सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिदः दुखः भाग्भवेत"
    राधे-राधे -हरे कृष्ण -हरी बोल --
    आईये प्रेम से उच्चारित करें---
    " हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे -हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे "
    जोबोले सो अभय -सत्य सनातन धर्मं की जय ...
    नारा है वीर बजरंगी----हर-हर महादेव

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  2. सत्यम शिवम् सुन्दरम मित्रो जगद में सत्य ही शिव अर्थार्त कल्याण-मय -भगवद तुल्य और श्रेष्ठ -उत्तम एवं सुन्दरतम है ...इस सत्य के परायण से संतुष्टि -उन्नति-शांति एवं आत्म-बल की उपलब्धि होती है ..संसार में सत्य के सिवा प्रत्येक नश्वर है -नाशवान है ...हमारी सभ्यता-संस्कृति का आधार यही सत्य है ..यही कारन है अनेकों अत्याचारी समूहों द्वारा सताए -मारे-काटे जाने पर भी आज हम सब सत्य आश्रयी सनातन मताब्लम्बी पुनः शिखर की और अग्रसर हैं ...जगत में सर्वत्र सनातन घोष की महिमा है ..स्वामी विवेकानंद --भक्ति वेदान्त प्रभु पाद के कृपा ज्ञान व सत्य सनातन संस्कृति के आशीर्वाद से ...भक्त जन हरे कृष्ण जप -गायन कर रहे हैं ..
    आओ हम सब भी इन महापुरुषों के पावन चरणों का ध्यान करते हुए प्रेम से गायें हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे -हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे .....हर-हर महादेव ..जो बोले सो अभय-सत्य सनातन धर्मं की जय

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  3. स्वीट राधिका राधे -राधे
    "या देवि सर्व भूतेषु मात्र रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमो नमः "
    हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ! हरेराम हरेराम राम राम हरे हरे
    कर्पूरगौरम करुनावतारम- संसार सारं भुजगेन्द्र हारं!! सदा वसंतम हृदयार विन्दे- भवं भवानी सहितं नमामि !!
    ॐ नमः शिवाय ---पार्वती पतये हर-हर महादेव!!
    जय-जय सियाराम -जय-जय सियाराम -जय-जय सियाराम -जय-जय सियाराम -जय-जय सियाराम -जय-जय सियाराम

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  4. bhaj govindam bhaj govindam govindam bhaj mudh-mate
    punarapi janmam-punarapi maranam-punarapi janani jathare shayanam
    bhaj govindam bhaj govindam govindam bhaj mudh-mate

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  5. श्री राधे श्याम हरे कृष्ण हरे राम श्री सीता राम भवानी शंकरौ वन्दे श्रृद्धा विश्वास रुपिणौ ....
    मित्र
    जन भगवान के नाम लीला कथा रहस्य अत्यंत कृपा-कल्याण कारी हैं ..भक्त-संत
    आज्ञा कर गए हैं की भगवान के चरित्र बड़े ही भाव-श्रृद्धा-विश्वास के साथ
    श्रवण करने चाहिए ..
    यथा गोस्वामी जी श्री राम चरित मानस में लिखे हैं "उमा राम गुण गूढ़ पंडित मुनि पावहीं बिरति-पावहीं मोह बिमूढ़ जे हरी बिमुख न धर्म रति"..अर्थार्त
    ..पंडित-मुनि भगवद चरित्रों को सुन-समझ कर वैराग्य प्राप्त करते हैं जबकि
    ..जिनका मन श्री राम में नहीं है वो महामूर्ख चरित्र सुनकर मोह को
    प्राप्त होते हैं..!..सुप्रभातम राधे-राधे ..ज्वाइन कम्युनिटी हरे कृष्ण
    जय सीता-राम -राधे-राधे-
    मित्रो जगत में सदैव सद-बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि सद-विचारों से उन्नति-समृद्धि होती है एवं दुर्बुद्धि से हमेशा पतन-दुःख प्राप्त होते हैं -यद्धपि प्रत्येक मनुष्य में सद-बुद्धि(सुमति) एवं कुबुद्धि(कुमति) सामान रूप से विद्यमान रहती है-गोस्वामी तुलसी दास जी राम-चरित-मानस में वर्णन कर रहे हैं-
    "सुमति-कुमति सबके उर रहहीं-नाथ पुराण-निगम अस कहहीं
    जहाँ सुमति तहां सम्पति नाना-जहाँ कुमति तहां विपति निदाना"
    अतः..हमें भगवद चरनाश्रय ग्रहण कर समर्पित भाव से सुविचार शील हो-जगत में जीवन यापन करना चाहिए-
    कृपया ध्यान रखें भगवान शंकर एवं भगवान विष्णु की निंदा करना तो दूर सुनना भी गौ-हत्या के समान पाप है.."हरि-हर निंदा सुनहिं जे काना- होई पाप गो घात समाना "..मेरा अनुरोध है की यदि आपको मेरे द्वारा हरि नाम ..हरि कथा-कृपा स्क्रेप्स से कोई परेशानी हो तो मुझे कहें ..हरि स्क्रेप्स पर व्यंग न करें-
    प्रेम से गायें-हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे-हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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  6. जय हिंदुत्व जय भारत .... धर्मं सेवा ही सच्ची राष्ट्र सेवा है हिन्दू धर्मं सनातन धर्मं है भारत राष्ट्र की आत्मा है ..महान हिन्दू संस्कृति धर्मं राष्ट्र वादी है जोकि सर्व मंगल की कामना से सिद्ध है ...सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः ...सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद् दुखः भागभवेत अतः सच्चे आस्तिक राष्ट्र वादी ...कम्युनिटी जय हिंदुत्व -जय भारत से जुड़ें ...


    राधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधेराधे-राधे

    गौ हत्या बंद हो गौ हत्या बंद हो गौ हत्या बंद हो गौ हत्या बंद हो गौ हत्या बंद हो गौ हत्या बंद हो गौ हत्या बंद हो गौ हत्या बंद हो

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  7. प्रेम से बोलें
    राधे-राधे
    हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे -हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

    !!मधुराष्टकं!!

    अधुरं मधुरं वदनं मधुरं - नयनं मधुरं हसितं मधुरम्!
    हदयं मधुरं गमनं मधुरं - मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
    वचनं मधुरं चरितं मधुरं - वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
    चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं - मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
    वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुर:- पाणिर्मधुर: पादौ मधुरौ।
    नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं - मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
    गीतं मधुरं पीतं मधुरं - भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
    रुपं मधुरं तिलकं मधुरं - मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
    करणं मधुरं तरणं मधुरं - हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
    वमितं मधुरं शमितं मधुरं - मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
    गुन्जा मधुरा माला मधुरा - यमुना मधुरा वीची मधुरा।
    सलिलं मधुरं कमलं मधुरं - मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
    गोपी मधुरा लीला मधुरा - युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम्।
    दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं - मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
    गोपा मधुरा गावो मधुरा - यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
    दलितं मधुरं फलितं मधुरं - मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

    ॥ इति श्रीमद्वल्लभाचार्यकृतं मधुराष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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  8. रघुनन्दन कृपा करी मिले रामचरित के गान ! प्रेम बढ्यो-श्रद्धा बढ़ी बनी श्रीजी सों पहिचान !!
    गावत रहूँ तुलसी सुधा सूरदास के बोल ! मीरा जी की भावना गिरधर-गिरधर तोल !!
    नाम स्मरण चैतन्य से सीखो कीर्तन रंग ! स्वामी श्री हरिदास को नित्य बिहार प्रसंग !!
    श्री हित हरिवंश की रीत में प्रीत प्रगट भई आय ! राधावल्लभ लाडिले मेरो मन तोकूँ ही ध्याय !!
    वृन्दावन में वास कर श्रीजी पदानुराग ! रसिकन संग वर्णन करूँ प्रियतम प्रीति भाग !!
    "स्वीटी राधिका"प्रमुदित सदा भक्ति-भक्त संयोग ! भगवंतहु सम्मुख सदा श्रीजी कृपा के योग !!

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  9. मित्रो...रामजी से विरोधाभास रखने वालों की क्या गति होती है ये प्रस्तुत पंक्तियों में जानें
    काहूँ न बैठन कहा न ओही ! राखि को सके राम कर द्रोही !!
    मातु मृत्यु पितु समन समाना ! सुधा होई बिष सुनु हरि जाना !!
    मित्र करइ सत रिपु कई करनी ! ता कहं बिबुध नदी बैतरनी !!
    सब जग ताहि अनलहु ते जाता !जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता !!
    भगवान के स्वरुप-लीला-धाम-मूर्ति-धर्मं-नाम से बैर रखने वालों को संसार में तथा अन्यत्र कहीं भी आसरा मिलना असंभव है राम बिरोधी से माता-पिता,मित्र,अमृत तथा सभी देवता-सम्बन्धी विपरीत व्यवहार करने लगते है अर्थात राम बिरोधी का विनाश अवश्यमेव है यद्यपि हमारे रामजी करुनानिधान हैं-अत्यंत कृपालु हैं रामजी किसी के अनिष्ट की नहीं देखते परन्तु राम बिरोधियों का पतन उनके स्वयं के कुकर्मों के द्वारा हुयी कर्म हानि के द्वारा होजाता है ..रामजी से विरोधाभास रखने पर स्वयं के भाग्य-सम्बन्धी-मित्र बिरोधी अर्थात हानि करने वाले हो जाते हैं मित्रो रामजी की कृपा - आशीर्वाद से
    अमंगल भी मंगल हो आनंद प्रदान करते हैं
    यथा-मंगल भवन अमंगल हारी! उमा सहित जेहिं जपत पुरारी !!
    अतः हम सबको माता पार्वती - भगवान शंकर के साथ उनके मानस हंस श्री रामजी को प्रतिदिन-प्रतिपल सुमिरन करना चाहिए --जय-जय सियाराम
    आईये सबके ह्रदय में माता के रूप में निवास करने वाली जगत जननी माता दुर्गा -माता पार्वती-माता काली के चरणों में प्रणाम कर
    "श्री रामचरित मानस" कम्युनिटी की सदस्यता ग्रहण कर ऑरकुट पर राधे-राधे कह हरि- नामामृतम लूटें -
    साथ ही साथ भगवान भूतनाथ-करुनावतार-महादेव श्री विश्वनाथ भगवान शंकर को प्रणाम कर कृपाशीष प्राप्त करें

    कर्पूरगौरम करुनावतारम संसारसारं भुजगेन्द्रहारं !
    सदाबसंतम हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि!!
    "या देवि सर्व भूतेषु मात्र रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमो नमः "
    प्रेम से गायें --
    हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे -हरेराम हरेराम राम राम हरे हरे

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  10. मंगल भवन अमंगल हारी! उमा सहित जेहिं जपत पुरारी !!
    तप्त कांचन गौरांगी श्री राधा वृन्दावनेश्वरी
    ब्रषभानु सुते देवि प्रनमामि हरिं प्रिये!!
    स्वीट राधिका राधे -राधे
    जय-जय सिया राम
    हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे -हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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  11. कायरता बन स्वभाव भारत में ,छायी घोर गुलामी है !

    टुकडे-टुकडे किये देश के , झूँठी वीर कहानी है !!

    भूतकाल को छोड़ दें तो , खाली हाथ रहेंगे हम !

    हजारों सालों से पिटना-कटना ही पाएंगे हम !!

    देशप्रेम को भूल गए सब निज-निज तृष्णा लाभों में !

    धर्म-कर्म को नष्ट कर दिया , जाति के जंजालों में !!

    लालच के वश लुटा दिया है , स्वाभिमान को नालों में !

    ठेष लगाई दर्शन-गुरु को , पाखंडों की चालों ने !!

    कोई लुटा आलस में आके , कोई करके दया लुटा गया !

    जीत मिली थी समर भूमि में, उसको भी लौटा दिया !!

    मूरख हैं हम एक धरा पर , जीत को हार बना दिया !

    अपना तीर्थ जो केशरिया था , राक्षस वहाँ वसा दिया !!

    श्रीनगर सा वैभव अपना , मूर्खता में गँवा दिया !

    कोई एक न दोषी सब दोषी हैं , मौका था जो गँवा दिया !!

    यदि सच्चे वीर यहाँ होते तो , तोड़के मुँह गद्दारों के !

    राजनीत से दूर फैंकते , तिलक करते रखवालों के !!

    हाय ओ भारत ज्ञान भूमि , तुम ही क्यों न कुछ करते हो !

    भ्रष्टाचार-भुखमरी जैसी , हायों को क्यूँ सहते हो !!

    दूर करो मेरी माँ भारती जयचंदों की भीड़ों को !

    बदल के लिख दो उज्जवल-उज्जवल , हार चुकी तकदीरों को !!

    पूरे करदो जगदम्बे माँ राम-श्याम और विश्वनाथ के गीतों को !

    सुनें मुरली मधुर रटें राम-राम , हर-हर महादेव संगीतों को !!

    तोहे करे पुकार मेरी मातृभूमि तेरी बेटी 'स्वीटी' प्यारी !

    मेरे पूर्ण मनोरथ कर माता , मेरी माँ भारती सबसे न्यारी !

    'राधे-राधे' स्वीटी राधिका 'राधे-राधे'

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  12. धर्म न दूसर सत्य समाना

    हरेकृष्ण !

    मित्रो , संसार में केवल एक मात्र सत्य धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !

    सत्य -सनातन है , सनातन का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा निर्मित नहीं ,सनातन का विस्तृत अर्थ है -जो पहले अर्थात स्रष्टि से पूर्व था ,स्रष्टि के समय अर्थात आज भी है ,एवं स्रष्टि के बाद यानि हमेशा रहेगा !

    हो सकता है कुछ समय मानव निर्मित छद्म धर्म संसार में कुछ समय के लिए व्याप्त दिखें ,परन्तु जिस प्रकार वादल सूर्य को कुछ समय ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य पुनः इन वादलों को फाड़ कर प्रकट हो जाता है ! इसी प्रकार सत्य-सनातन धर्म अन्य सभी मायावी -झुंठे -कल्पित धर्म के नाम पर अधर्मों को अपने तेज से पुनः नष्ट कर समस्त चरा-चर की रक्षा हेतु संसार में व्याप्त हो जाता है !

    मित्रो सौभाग्य से हमारा जन्म इस सत्य-सनातन धारा में हुआ है !

    अथवा भगवान के-श्री गुरु के आशीर्वाद से हम सनातन धर्म धारा से जुड़े हैं !

    तो हमारा नैष्ठिक कर्तव्य है कि हम अखिल जगत में सनातन धर्म -धारा के अविरल प्रवाह के लिए संकल्प बद्ध हों !

    इसी सत्य-सनातन प्रवाह में अद्वैत,द्वैत,शुद्धा-द्वैत ,द्वैता-द्वैत, अचिन्त्य भेदा-भेद ,विशुद्धा-द्वैत नामक अनेकों सत्य-संकल्पित धाराएँ वहीं ! जिनका एकमात्र प्रयोजन सत्य से साकार होना है !

    उपरोक्त धाराओं में अंतिम चार धारा वैष्णव रीती कहलातीं हैं !

    जिनमें भगवद रूपी सत्य प्राप्ति के लिए उपासना रीती भगवद कृपा-प्रेम भरा पड़ा है !

    यहाँ साधक का संपूर्ण योग-क्षेम भगवद शरणागति के द्वारा , श्री भगवान के कर-कमलों में होता है ! यहाँ श्रीभगवान अपनी कृपा महिमा के द्वारा शरणागत-भक्त को परम दुर्लभ 'अभय' पद प्रदान करते हैं !

    अर्थात भक्त को किसी भी प्रकार कि चिंता-क्लेश-दुःख-पीड़ा-ताप-अवसाद-भ्रम नहीं रहता एवं इसी जीवन में भगवद प्राप्ति हो जाती है !

    मित्रो,

    यह सर्व-श्रेष्ठ साधन भगवद कृपा-शरणागति पूर्णरूप से निर्मल-चित्त होने पर प्राप्त होती है !

    यथा "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!"

    और यह निर्मल चित्त-ह्रदय भगवान के श्री नामों के जप-संकीर्तन से प्राप्त होता है !

    तो आइये अभी से इस परम मनोहर भगवद नाम जप-संकीर्तन को अपना आधार वना प्रेम से गायें-

    हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !

    हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!

    जय-जय श्री राधे !!

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  13. श्रीराधे ,

    मेरी मातृभूमि भारत माता सदैव महान थी महान है और महान रहेगी ,

    यही कारण था कि घोर पाकिस्तानबादी इकवाल ने लिखा "कुछ वात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी -सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा " यहाँ अप्रतक्ष्य रूप से इकवाल याद कर रहा है कि इस हिंदुस्तान ( हिंदुस्तान का व्यापक अर्थ है , भारत देश, भारतीय संस्कृति एवं विरासत ) को हजारों सालों से तुर्क-मुस्लिम-अफगानों-अदि आक्रान्ताओं ने मारा-पीटा परन्तु यह पुनः -पुनः कभी समाज में भक्ति रस बर्षाकर कभी शिवाजी,छत्रसाल,महाराणा प्रताप जैसे राष्ट्र-धर्म सुपुत्रों के द्वारा कभी मालवीयजी-हेडगेवारजी-गुरूजी-दीनदयालजी जैसे महानुभावों कि सेवा प्रदान कर अपनी महत्ता सिद्ध करता है ! मेरा कथन है कि इन सब वीर-वलिदानी-राष्ट्र-धर्म सेवकों से स्वाभिमान सीख , वर्तमान -भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार-लालच-राष्ट्र-धर्म उदासीनता से जीतें कायरता त्यागें !

    मेरा ब्लॉग " my country-my wishes " radhika-gautam.blogspot.com में कायरता कहने का आशय केवल इतना है कि जब मोहम्मद गौरी-गजनी-तैमूर लंग आदि विदेशी-विधर्मी आक्रान्ता-लुटेरे भारत में डाका-हत्या एवं अधर्म प्रचार के लिए आये थे ! तव क्यों कर भारतीय जन-मानस ने अपने अदम्य साहस का परिचय देकर इनका मुंह नहीं तोडा था ? क्यों इनको गधे पर विठा जूतम-मार नहीं की ? अपितु स्वयं को वचाने में दूसरों को कटता छोड़ गए थे ! अरे उस समय यदि प्रत्येक भारत वासी एक-एक पत्थर हाथ में लेता तो इन दुष्टों का लहू वहकर काबुल-अरब-बगदाद आदि में हमारी वीरता का सन्देश देता !

    मित्रो, मेरा भारत 'सर्वे भवन्तु सुखिनः ' 'वसुधैव-कुटुम्बम' का आदरणीय महान विश्व सन्देश धारण किये है अतः किसी को न सताना किसी पर आक्रमण न करना उचित है परन्तु आत्मरक्षा हेतु आक्रान्ता-अधर्मियों का नाश हेतु मेरी भगवद गीता महाभारत हेतु प्रतिबद्ध है , यहाँ आत्मरक्षार्थ-धर्मरक्षार्थ-राष्ट्ररक्षार्थ यदि कोई युद्ध छोड़ किसी अन्य में मन देगा तो उसे मेरे भगवान श्री कृष्ण "कार्पण्य दोषो " कह कायर ही कहते हैं !

    हाँ मेरी भारत-भूमि का अहो भाग्य है कि यहाँ ,

    "जब-जब होई धरम के हानी ! बाढहिं असुर महा अभिमानी !!"

    "तव-तव धरि प्रभु विविध शरीरा ! हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा !!"

    निजजनों की रक्षा हेतु भक्तवत्सल भगवान श्रीराम ,श्रीकृष्ण स्वरूप में प्रगट हो दुष्टों का विनाश करते हैं !

    !राधे-राधे !

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  14. धर्म न दूसर सत्य समाना
    और परोपकार भक्तों की रीती है यथा श्री मद रामचरितमानस के आधार पर "निज परिताप द्रवहि नवनीता ! पर दुःख द्रवहि संत सुपनीता !!
    संत जन "जो सहि दुःख पर छिद्र दुरावा " अतः परहित भाव के आगे भगवद भजन गौण नहीं है अपितु सभी भक्ति मार्गियों में सहज ही परोपकार होता है ! केवल परोपकार भी झंझटकारी है क्योंकि श्री मद भगवद गीता के अनुसार सभी शुभ-अशुभ कर्मों अर्थार्त पुन्य-पाप सभी का फल भोगना पड़ता है ! फल प्राप्ति हेतु पुनरपि जन्म लेना ही पड़ता है ! जबकि भक्त अपने सभी पुण्यों को श्री कृष्णार्पण कर निष्काम भाव से भगवद प्रीति में रत रहता है ! और मित्रो संसार में केवल एक मात्र सनातन धर्म ही धर्म है ! शेष सब मिथ्या आडम्बर है ,, अन्य सभी कथित धर्म व्यक्तिवादी हैं वहां स्वर्ग सुख ही सर्वोपरी है !जबकि सनातन धारा ब्रह्म-वादी, भगवद प्रेम प्रदायी है यहाँ "स्वर्गहु लाभ अ;प सुख दाई है" ईश्वर से मिलन ही जहाँ सर्वोपरि सिद्धांत है ! सनातन धर्म मुक्ति कांक्षी है जबकि अन्यान्य भ्रम प्रदायी -बंधन कारक है ! सनातन धर्म सत्य है और सत्य का कभी अभाव नहीं होता " नासते विध्यते भावो-ना भावो विध्यते सतः " सनातन धर्म सृष्टि के पूर्व भी था ..सृष्टि के समय भी है तथा आगे सृष्टि के उपरांत भी रहेगा ... और मित्रो सत्य के अलावा कुछ और का असतित्व ही नहीं तो कोई और कैसे धर्म हो सकता है ! भगवान कृष्ण के अनुसार श्री मद भगवद गीता में वर्णित अन्य धर्म केवल वर्णाश्रम-देश-काल आधारित कर्म हैं ! यदि कोई अन्य किसी धर्म में विश्वास रखता है तो वह भगवद गीता के विरुद्ध है ! अतः अन अनुकरणीय है ! मेरा सुझाव है कि सर्व धर्म सम्मलेन के बजाय सनातन धर्म सम्मलेन कहना अधिक उचित है ! अतः कृपया हिंदुत्व-सनातन धर्म के महत्वा को समझें ! और रही बात अन्य सभी धर्मों के मिथ्या सिद्ध करने की तो मित्रो हिंदुत्व के अलावा अन्य सभी छद्म धर्म पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखते और पुनर्जन्म स्रष्टि का अकाट्य सत्य है जिसे विज्ञानं भी समझने की कोशिश में है ! अतः अन्य सभी धर्मों को हम केवल एक ही धारणा पुनर्जन्म धारणा से झूंठ सिद्ध कर देते हैं ! जय-जय श्री राधेश्याम - जय सियाराम -हर-हर महादेव
    जो बोले सो विजय -सत्य सनातन धर्म की जय

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