* * धर्म न दूसर सत्य समाना * * |
जय श्री राम-सनातन धर्म "सत्य" है-सत्य गामी है-सत्य हमेशा है सत्य का कभी अभाव नहीं होता -सत्य-सत्य है |
ॐ नमः शिवाय-"सत्य-सनातन"धर्म नित्य-स्थिर-अनिवार्य है सत्य-सनातन धर्म शिव एवं सुन्दर है |
जय सियाराम-राम राज्य सब सुखों की खान है - यहाँ सत्य के आश्रय में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता |
जय वीणा-वादिनी -सत्य-सनातन धर्म नित्य- शाश्वत एवं शांत है -यश-विद्या प्रदायी है |
वन्दौ लक्ष्मी-नारायनं-सत्य-समृद्धि-उन्नति प्रदायी एवं शान्ताकारम-कल्याण प्रद है |
सनातन संस्कृति भगवान श्री सीताराम कृपा प्रदायी है |
सनातन धर्मं दान-दया-सेवा-वीरता-क्षमा-संकल्प पालन-परहित- प्रेम एवं भक्ति का संगम है |
सनातन दर्शन ईश्वर प्रेम के सापेक्ष है , नकि स्वर्गादि प्रलोभनों के |
सत्य-सनातन धर्मं प्रेम-संतुष्टि सिखाता है न कि युद्ध,हिंसा,आतंकवाद,व्यभिचार,लूट,ठगी आदि |
सनातन संस्कृति का नाम स्वान्तः सुखाय भी है- ये मधुर-सुरीली एवं रसमयी है ये श्री राधिकाजी की प्रीति-रीती है- श्री कृष्ण कन्हैया की मुरली धुन संगीत है |
सनातन-धर्मं में ईश्वर घट-घट व्यापी के साथ, किसी भी सम्बन्ध से जुड़ अवतरित भी होता है यसुमति नंदन बनकर छछिया भर छाछ पे नाचता भी है |
सनातन संस्कृति किसी भी बंधन से परे मन-मोहन माखन चाखनहार है |
यहाँ ईश्वर हमारी आत्मा है-हमारा सखा है- हमसे दूर न हो हमारे मध्य ही है |
सनातन धर्म मर्यादा है-आचरण है-भक्त वत्सलता है एवं धर्म रक्षार्थ पुरुषार्थ है |
सनातन संस्कृति में श्रेष्ठ राम कृपा-राम नाम आधार है |
सनातन धर्मं-भगवद चरणारविन्द प्रीति एवं भगवंत कृपा दायी है |
सत्य-सनातन वह तेज पुंज है जो जगत को बाहर-भीतर सब ओर से आलोकित करता है |
सनातन धर्म जगत में वैभव-सम्पदा-आनंद है |
सनातन संस्कृति साक्षात् जगदम्बा-माँ है जो सभी आश्रित जनों का दोष दर्शन किये बिना लालन-पालन करती है |
सनातन संस्कृति दुष्ट जनों के लिए-आक्रान्ताओं के लिए साक्षात् महा-काली स्वरुप है |
यहाँ नारी जाति भोग्या न होकर माँ स्वरूपा साक्षात् नारायणी-शिवा है |
सनातन धर्म शुभ-श्रेष्ठ-मंगलमूर्ति-गननायक एवं सिद्धि-निधि प्रदायक है |
सनातन धर्मं शिव स्वरुप है |
सनातन धर्म भक्त वांछा कल्प तरु श्री मन नृसिंह नारायण है |
सनातन धर्मं श्रेष्ठ सत्य नारायण है |
सनातन धर्म एश्वर्य-माधुर्य-सत्य एवं कृपा का संगम है श्रीमन लक्ष्मी-नारायण स्वरुप है |
सनातन का अर्थ है - सदैव था (किसी ने बनाया नहीं) सदैव है एवं सदैव रहेगा(कोई नष्ट नहीं कर सकता ) |
सनातन का अर्थ है शिव अर्थार्त प्रत्येक काल में कल्याणकारी |
सनातन का अर्थ है-सुन्दरम अर्थात प्रत्येक युग में एक मात्र श्रेष्ठ-उत्तम-अविनाशी एवं कृपालु |
सनातन धर्म जगत-सृष्टि का कर्ता-भर्ता एवं नियंत्रक है |
या देवि सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमो नमः |
जो बोले सो अभय-सत्य सनातन धर्म की जय-हर-हर महादेव
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे ! हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!
-सनातन सन्देश-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः !
सर्वे भद्राणि पश्च्यन्तु मां कश्चिद् दुःख भाग भवेत् !!
अर्थात- सब सुखी हों-सभी निरोगी हों सभी दीर्घजीवी हों सभी की उन्नति हो हे भगवान किसी को रंच-मात्र भी दुःख न हो सर्वे भद्राणि पश्च्यन्तु मां कश्चिद् दुःख भाग भवेत् !!
मित्रो प्रस्तुत ब्लॉग के अंतर्गत हम हिन्दुत्व अर्थात महान हिन्दू धर्म के सन्दर्भ में चर्चा-परिचर्चा करेंगे -
हमारा ध्येय महान धर्म के महान इतिहास -गौरव एवं धर्मं-ध्वजी वीर-बलिदानी भक्त-संत-महात्माओं के जीवन अवलोकन कर प्रेरणा लेना है जिससे हम भी इस भगवान की कृपा स्वरुप सनातन धर्मं को समझें व पालन कर विधर्मियों की कुत्सित मंशा पर प्रहार कर उन्हें समूल नष्ट करदें ...
आज दुर्भाग्य से चहुँ ओर धर्मं के विपरीत आचरण हो रहा है लोग सभ्यता और संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं ..साथ ही साथ विधर्मी आक्रान्ता जो भारत का खाकर के भारत एवं भारत की संतानों -संस्कृति पर कुठाराघात कर रहे हैं ...कहीं बम-ब्लास्ट करके कहीं प्यार के नाम पर नव -युवतियों को छल के जेहाद नामक कुत्सित -लक्ष साधे जा रहे हैं..
भारतीय राजनीति ध्रित्रराष्ट्र की तरह अंधी होकर तुष्टि करण की राह पर इन धर्मं विरोधी हत्यारे-पापियों का पोषण कर रही है...
आज दुर्भाग्य से चहुँ ओर धर्मं के विपरीत आचरण हो रहा है लोग सभ्यता और संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं ..साथ ही साथ विधर्मी आक्रान्ता जो भारत का खाकर के भारत एवं भारत की संतानों -संस्कृति पर कुठाराघात कर रहे हैं ...कहीं बम-ब्लास्ट करके कहीं प्यार के नाम पर नव -युवतियों को छल के जेहाद नामक कुत्सित -लक्ष साधे जा रहे हैं..
भारतीय राजनीति ध्रित्रराष्ट्र की तरह अंधी होकर तुष्टि करण की राह पर इन धर्मं विरोधी हत्यारे-पापियों का पोषण कर रही है...
साथियों यदि हिन्दू है तो भारत राष्ट्र भी है क्योंकि हिंदुत्व इस राष्ट्र की आत्मा है बिना आत्मा के जिस प्रकार शरीर शव हो जाता है-उसी प्रकार बिना हिंदुत्व के बिना सनातन संस्कृति के यह राष्ट्र मृत प्राय है
मित्रो,हिंदुत्व किसी धार्मिक कट्टर बाद या हिंसा-उत्प्रीडन या व्यक्ति विरोधी या स्वतंत्र चिंतन विरोध का नाम नहीं है ! हिंदुत्व तो विश्व बंधुत्व की प्रार्थना युक्त सर्व के सुख हेतु मनीषियों द्वारा खोजा एवं जीवन में अपनाया वैज्ञानिक आधार बाला स्वस्थ दर्शन है जिसमें स्वतंत्र मानवीय अभिलाषाएं जो सबके लिए उन्नति एवं प्रसन्नता के वरदान हैं यहाँ" ईश्वरः सर्व भूतानाम " "बसुधैव कुटुम्बम " "सर्वे भवन्तु सुखिनः " जैसी अभिलाषाएं-मंत्र हैं साथ ही साथ भगवान राम एवं कृष्ण जैसे लीलावतार भगवान शंकर जैसे करुनावतार एवं माता जगदम्बा जैसे कृपावतारों द्वारा भगवान से सरल एवं प्रेम भरी-सम्बन्धात्मक निकटता है
मित्रो केवल यही एक मात्र धर्म-दर्शन है जहाँ ईश्वर को आप माता-पिता-भाई-बहन-गुरु-प्रेमी किसी भी रूप में भज कर प्राप्त कर सकते हो ..हिन्दू धर्म-दर्शन में स्वर्ग ही अंतिम नहीं है यहाँ "स्वर्गहु लाभ अल्प सुख दाई " कह कर स्वर्ग सुख को भी तुच्छ सुझाया है यहाँ भगवान से प्रीती ही सर्वोपरि है तथा मृत्यु के बाद ही नहीं मृत्यु से पहले इस जीवन में ही ईश्वर तक पहुँच बताई है (अन्यान्य कथित धर्म मृत्यु के बाद ही ईश्वर मिलन को दर्शाते हैं -उनके यहाँ स्वर्ग ही सर्वोपरि है-पुनर्जन्म संभव नहीं है जबकि अनेकों घटनाओं से सिद्धहै कि पुनर्जन्म होता है-अतःवाकी सब पुनर्जन्म न मानने वाले धर्म मिथ्या सिद्ध होते हैं
दुर्भाग्य से अपने संकीर्ण स्वार्थों के कारण मानव एवं विश्व इस महान धर्मं-संस्कृति से विमुख हो (सबसे पहले एकमात्र धर्मं-सनातन धर्म था ) नाना प्रकार के मतों-धर्मों में पड शांति-आनंद एवं सत्य-अहिंसा से दूर हो विनाश के चक्रव्यूह में जेहाद-क्रुसेड-इत्यादि कुत्सित मार्गों को अपना मानवता के लिए शत्रु सिद्ध हो रहा है मेरी अपील है कि हम सबको अपनी महान एवं कल्याणकारी सनातन संस्कृति-धर्म की रक्षा-प्रचार में सहयोग कर मानवता एवं एक राष्ट्र (मेरा मानना है की संपूर्ण धरा एक राष्ट्र है यहाँ कोई दूसराराष्ट्र हो ही नहीं सकता एवं यही उचित-न्यायोचित धर्म है ) के लिए संकल्प बद्ध होना चाहिए !
दुर्भाग्य से अपने संकीर्ण स्वार्थों के कारण मानव एवं विश्व इस महान धर्मं-संस्कृति से विमुख हो (सबसे पहले एकमात्र धर्मं-सनातन धर्म था ) नाना प्रकार के मतों-धर्मों में पड शांति-आनंद एवं सत्य-अहिंसा से दूर हो विनाश के चक्रव्यूह में जेहाद-क्रुसेड-इत्यादि कुत्सित मार्गों को अपना मानवता के लिए शत्रु सिद्ध हो रहा है मेरी अपील है कि हम सबको अपनी महान एवं कल्याणकारी सनातन संस्कृति-धर्म की रक्षा-प्रचार में सहयोग कर मानवता एवं एक राष्ट्र (मेरा मानना है की संपूर्ण धरा एक राष्ट्र है यहाँ कोई दूसराराष्ट्र हो ही नहीं सकता एवं यही उचित-न्यायोचित धर्म है ) के लिए संकल्प बद्ध होना चाहिए !
-मित्रो विश्वास रखें आप यदि इस ब्लॉग में पोस्ट करते हैं तो ये आपकी ओर से सच्ची-राष्ट्र सेवा-धर्म सेवा एवं मानवता सेवा होगी-
प्रेम से वोलें-" जो वोले सो अभय-सत्य सनातन धर्म की जय"
हर-हर महादेव
जय-जय सिया राम
राधे-राधे-हरेकृष्ण
-सत्य-सनातन धर्म की कुछ झलकियाँ-
*सनातन धर्मं दान-दया-सेवा-क्षमा-त्याग-वीरता-अहिंसा-करुणा-शरणागत रक्षा-संकल्प पालन-परहित- प्रेम एवं भक्ति का संगम है
*सत्य-सनातन धर्मं प्रेम-संतुष्टि-दान-त्याग-दया-वीरता-क्षमा एवं श्री रामभक्ति सिखा महावीरबजरंगबली -राम काज करिबे को रसिया बनाता है न कि आतंकबाद-हिंसा-वैमनस्यता-धोखा-धडी
*सनातन-धर्मं में ईश्वर घट-घट व्यापी के साथ, किसी भी सम्बन्ध से जुड़ अवतरित भी होता है
यहाँ परब्रह्म यसुमति नंदन बन छछिया भर छाछ पे नाचता भी है
*सनातन दर्शन ईश्वर प्रेम के सापेक्ष है , नकि स्वर्गादि प्रलोभनों के..
*सनातन संस्कृति का नाम स्वान्तः सुखाय भी है ये मधुर-सुरीली एवं रसमयी है यह प्रीति की रीत-
प्रीति के गीत श्री राधिका वल्लभ रस सुधा है
*सनातन संस्कृति किसी भी बंधन से परे मन-मोहन माखन चाखनहार है
*सनातन संस्कृति में श्रेष्ठ राम कृपा-राम नाम आधार है
*सनातन धर्म-मर्यादा है-आचरण है-भक्त वत्सलता है एवं धर्म रक्षार्थ पुरुषार्थ है
*सनातन धर्मं-भगवद चरणारविन्द प्रीति एवं भगवंत कृपा दायी है
*सनातन धर्म जगत में वैभव-सम्पदा-आनंद है
*सनातन धर्म भक्त वांछा कल्प तरु श्री मन नृसिंह नारायण है
*सनातन धर्मं श्रेष्ठ सत्य नारायण है
*सनातन धर्म एश्वर्य-माधुर्य-सत्य एवं कृपा का संगम है
*सनातन का अर्थ है-सदैव था(किसी ने बनाया नहीं)सदैव है एवं सदैव रहेगा(कोई नष्ट नहीं कर सकता)
*सनातन धर्म-संस्कृति जगत के-सृष्टि के कर्ता-भर्ता एवं नियंत्रक है
*सनातन का अर्थ है-सुन्दरम अर्थात प्रत्येक युग में एक मात्र श्रेष्ठ-उत्तम-अविनाशी एवं कृपालु
*सनातन का अर्थ है शिव अर्थार्त प्रत्येक काल में कल्याणकारी
*सनातन धर्म शुभ-श्रेष्ठ-मंगलमूर्ति-गननायक एवं सिद्धि-निधि प्रदायक है
*यहाँ नारी जाति भोग्या न होकर माँ स्वरुप है-वन्दनीय है-साक्षात् नारायणी-शिवा है
*सनातन संस्कृति दुष्ट जनों के लिए-आक्रान्ताओं के लिए साक्षात् महा-काली स्वरुप है
*सनातन संस्कृति साक्षात् जगदम्बा-माँ है जो सभी आश्रित जनों का दोष दर्शन किये बिना लालन-पालन-कृपा करती है
*सत्य-सनातन धर्म वह तेज पुंज है जो सृष्टि-जगत को बाहर-भीतर सब प्रकार से आलोकित करता है
*यहाँ ईश्वर हमारी आत्मा है-हमारा सखा है-हमसे दूर न हो कर हमारे मध्य ही है
*जय वीणावादिनी--"सत्य-सनातन" धर्म नित्य-शाश्वत एवं शांत है--"यश-विद्या" प्रदायी है
*जय सियाराम--राम राज्य सब सुखों की खान है -यहाँ सत्य के आश्रय में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता श्री राम कृपा के आश्रय में सब मंगल-सुख-आनंद प्राप्त होते हैं
*जय श्री राम-सनातन धर्म "सत्य" है-सत्य गामी है-सत्य हमेशा है,था और रहेगा सत्य का कभी अभाव नहिं होता- सत्य ही एक मात्र सत्य है !
*ॐ नमः शिवाय--"सत्य-सनातन" नित्य-स्थिर-अनिवार्य है ! "सत्य-सनातन" शिव एवं सुन्दर है !
पारवती पत्ये-हर-हर महादेव
ॐ अम्बिकायै नमः
राधे-राधे
धर्म न दूसर सत्य समाना
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !! राधे-राधे
धर्म न दूसर सत्य समाना
हरेकृष्ण !
मित्रो , संसार में केवल एक मात्र सत्य धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !
सत्य -सनातन है , सनातन का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा निर्मित नहीं ,सनातन का विस्तृत अर्थ है -जो पहले अर्थात स्रष्टि से पूर्व था ,स्रष्टि के समय अर्थात आज भी है ,एवं स्रष्टि के बाद यानि हमेशा रहेगा !
हो सकता है कुछ समय मानव निर्मित छद्म धर्म संसार में कुछ समय के लिए व्याप्त दिखें ,परन्तु जिस प्रकार वादल सूर्य को कुछ समय ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य पुनः इन वादलों को फाड़ कर प्रकट हो जाता है ! इसी प्रकार सत्य-सनातन धर्म अन्य सभी मायावी -झुंठे -कल्पित धर्म के नाम पर अधर्मों को अपने तेज से पुनः नष्ट कर समस्त चरा-चर की रक्षा हेतु संसार में व्याप्त हो जाता है !
मित्रो सौभाग्य से हमारा जन्म इस सत्य-सनातन धारा में हुआ है !
अथवा भगवान के-श्री गुरु के आशीर्वाद से हम सनातन धर्म धारा से जुड़े हैं !
तो हमारा नैष्ठिक कर्तव्य है कि हम अखिल जगत में सनातन धर्म -धारा के अविरल प्रवाह के लिए संकल्प बद्ध हों !
इसी सत्य-सनातन प्रवाह में अद्वैत,द्वैत,शुद्धा-द्वैत ,द्वैता-द्वैत, अचिन्त्य भेदा-भेद ,विशुद्धा-द्वैत नामक अनेकों सत्य-संकल्पित धाराएँ वहीं ! जिनका एकमात्र प्रयोजन सत्य से साकार होना है !
उपरोक्त धाराओं में अंतिम चार धारा वैष्णव रीती कहलातीं हैं !
जिनमें भगवद रूपी सत्य प्राप्ति के लिए उपासना रीती भगवद कृपा-प्रेम भरा पड़ा है !
यहाँ साधक का संपूर्ण योग-क्षेम भगवद शरणागति के द्वारा , श्री भगवान के कर-कमलों में होता है ! यहाँ श्रीभगवान अपनी कृपा महिमा के द्वारा शरणागत-भक्त को परम दुर्लभ 'अभय' पद प्रदान करते हैं !
अर्थात भक्त को किसी भी प्रकार कि चिंता-क्लेश-दुःख-पीड़ा-ताप-अवसाद-भ्रम नहीं रहता एवं इसी जीवन में भगवद प्राप्ति हो जाती है !
मित्रो,
यह सर्व-श्रेष्ठ साधन भगवद कृपा-शरणागति पूर्णरूप से निर्मल-चित्त होने पर प्राप्त होती है !
यथा "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!"
और यह निर्मल चित्त-ह्रदय भगवान के श्री नामों के जप-संकीर्तन
से प्राप्त होता है !
से प्राप्त होता है !
तो आइये अभी से इस परम मनोहर भगवद नाम जप-संकीर्तन
को अपना आधार वना-
प्रेम से गायें-
को अपना आधार वना-
प्रेम से गायें-
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!
जय-जय श्री राधे !!